थकने वाली आत्माएं
कहने को आत्मा अमर है, ना ही गीली होती,
ना सूखती है, ना जलती और ना ही कटती
ऐसे बोल तो हौसला-अफजाई के लिए होते हैं
इस्तेमाल, असलियत में आत्मा पहले टूटती
जिंदा शरीर जब अपने में ही खोई अधमरी
आत्मा का बोझ और नहीं सहन कर पाता
शरीर देह में होता है परिवर्तित, दिशाहीन
आत्मा का बचा-खुचा वजूद जिस्म है छोड़ देता
खाड़ी के किनारे चलते-चलते पानी का उतार-चढ़ाव
देख प्रश्न उठा मेरे मन में, आत्मा क्या है
यह समझता हूँ पोथे हैं कई जो समझाते हैं
आत्मा क्या है और उस का परमात्मा से संबंध क्या है
परंतु इन पोथों में लिखे ज्ञान को समझना
विश्वास के ऊपर है निर्भर और मेरी समझ के बाहिर
शायद आत्मा सभी गतिविधिओं का नियंत्रण,
निर्देशन और प्रबंध करती रह कर जिस्म से बाहिर
यह संभव है अनगिनत आत्माएं अधीन हैं एक
परमात्मा के, लेकिन है बहुत पेचीदा ऐसा हिसाब
खरबों कोशिकाओं की आपसी दोस्ती और
दुश्मनी का पूर्ण उपयोग आत्मा के लिए पेचीदा हिसाब
परिभाषावत प्रभु सब कुछ करने में हैं निपुण लेकिन
भगवान बैठे हैं आराम से अपनी कुर्सी पर
स्वचालित प्रयोग है, थकने वाली आत्माओं के शरीर
मर-खप और प्रभु देखते तमाशा बैठ कुर्सी पर
